हेमनारायण साह: महाराजगंज के जननायक की कहानी- साइकिल से फॉर्च्यूनर तक का सफर

सिवान जिले के महाराजगंज प्रखंड के कसदेवरा गांव में 1 नवंबर 1960 को जन्मे हेमनारायण साह की कहानी किसी प्रेरणादायक नायक की तरह है। उनके पिता शिवजी साह एक व्यवसायी थे, जो आलू-प्याज की दुकान और चिमनी उद्योग चलाते थे। हेमनारायण ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई पूरी की और परिवार के व्यवसाय में हाथ बटाने लगे। लेकिन उनके मन में कुछ और ही सपने पल रहे थे—समाज की सेवा और लोगों के जीवन को बेहतर बनाने का जुनून।

Hemnarayan Sah: The story of the mass leader of Maharajganj

राजनीति में प्रवेश: एक नया मोड़ -साल 2004 में हेमनारायण ने व्यवसाय को अलविदा कहकर राजनीति में कदम रखा। उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की और जल्द ही जिला राजद के उपाध्यक्ष और फिर व्यवसायी प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष बने। उनकी सामाजिक सक्रियता और लोगों के बीच उपस्थिति ने उन्हें लोकप्रिय बनाया। चाहे कोई उत्सव हो या सामाजिक कार्यक्रम, हेमनारायण बिना न्योते के भी लोगों के सुख-दुख में शामिल होते। लेकिन राजद में टिकट न मिलने से निराश होकर उन्होंने 2010 में महाराजगंज विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा। उन्हें 8,324 वोट मिले, जो उनकी बढ़ती लोकप्रियता का सबूत था। 2014 के उपचुनाव में भी निर्दलीय उतरे और इस बार उनके वोट बढ़कर 20,333 हो गए। यह उनके अथक परिश्रम और जनता के बीच गहरे जुड़ाव का नतीजा था। जदयू के साथ नया सफर -2015 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हेमनारायण ने राजद छोड़कर जनता दल यूनाइटेड (जदयू) का दामन थामा। जदयू ने उन्हें महाराजगंज से उम्मीदवार बनाया, और उन्होंने इस मौके को दोनों हाथों से लपका। चुनाव में उन्होंने सारण प्रमंडल में सबसे ज्यादा मतों से जीत हासिल की और महाराजगंज के जननायक के रूप में उभरे। उनकी जीत ने साबित कर दिया कि मेहनत और जनता के प्रति समर्पण कभी बेकार नहीं जाता। विकास के लिए समर्पण - 2015 से 2020 तक विधायक रहते हुए हेमनारायण ने महाराजगंज के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने क्षेत्र में 126 सड़कों का निर्माण करवाया, मांझी-बरौली मार्ग का चौड़ीकरण करवाया, जो बिहार और उत्तर प्रदेश को जोड़ता है। इसके अलावा, उन्होंने पारा मेडिकल कॉलेज की स्थापना करवाकर क्षेत्र में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़ा योगदान दिया। शहर की मुख्य सड़क, जो दो दशकों से खराब हालत में थी, उसके निर्माण का कार्य भी उनके कार्यकाल में शुरू हुआ। लोकल बनाम बाहरी की बहस -2020 के विधानसभा चुनाव में हेमनारायण ने अपने प्रचार में 'लोकल बनाम बाहरी' का मुद्दा उठाया। वे खुद को स्थानीय बताते हुए अन्य उम्मीदवारों को बाहरी करार देते थे, जिससे क्षेत्र में एक नई बहस छिड़ गई। हालांकि, इस बार वे कांग्रेस के विजय शंकर दुबे से 48,800 वोटों के मुकाबले 46,800 वोट पाकर हार गए। लेकिन उनकी लोकप्रियता और जनता के बीच उनकी पकड़ कम नहीं हुई। विवाद और चुनौतियां- हेमनारायण साह का सफर हमेशा आसान नहीं रहा। 2020 में एक घटना में ग्रामीणों ने उन्हें क्षेत्र से भगा दिया था, जिसकी खबरें सुर्खियों में रहीं। इसके अलावा, मारपीट और लूट के एक मामले में उनकी संपत्ति कुर्क करने का कोर्ट का आदेश भी चर्चा में रहा। फिर भी, हेमनारायण ने हमेशा अपने कार्यों और जनता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्राथमिकता दी। निजी जीवन और विरासत- हेमनारायण साह की पत्नी बदामी देवी और उनके चार बच्चे हैं। उनका परिवार उनके राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में उनका साथ देता रहा है। 2020 में उनकी 85 वर्षीय मां का हार्ट अटैक से निधन हो गया, जो उनके लिए एक बड़ा व्यक्तिगत नुकसान था। महाराजगंज का जननायक - हेमनारायण साह की कहानी मेहनत, समर्पण और जनसेवा की कहानी है। व्यवसाय से राजनीति तक का उनका सफर दर्शाता है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। भले ही वे 2020 में चुनाव हार गए, लेकिन महाराजगंज की जनता के दिलों में उनकी छवि एक ऐसे नेता की है, जो हमेशा उनके सुख-दुख में साथ खड़ा रहा।

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